24 अक्तूबर 2009

मीता - 2

इस दुनिया की ठंडी उलाहनाएँ
कभी कभी ठिठूरा देती हैं मुझे
फिर याद आती हैं तेरी बातें -
सर्द सुबह में मीठी धूप सी,
गुदगुदा जाती हैं।

दम घोंटती है जब उदासीनता,
आस पास नाचती नज़रो की,
तब कभी कभी गूंजा जाते हैं,
मन को - गीत तेरे मीता !



मीता - 4
मीता  -3
मीता ! 

कोई टिप्पणी नहीं: